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Awaaz

by Darzi

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1.
Nazar 04:57
नोकीली नज़र चुबे इस कदर देखे मैंने तेरे इरादे ओह लगता है डर हूँ मैं बेखबर झूठे हैं ये कसमें वादे ओह जाने जान तू अपनी जगह मैं हूँ अपने ही ठिकाने ओह पतली गली गुज़र ही गयी चुबती हैं तेरी ये आँखें तेरी नज़र तेरी नज़र चुबे इस कदर तेरी नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र चुबे इस कदर तेरी नज़र वह दूर खड़ा घूर रहा घुटने लगी हैं ये सांसें ये सिलसिला सदियों चला एक ही धुन अब ये गाते मैं पास गयी तोह हार गयी मीठी मीठी सी हैं बातें वह हाथ लगे निशान पड़े बदन पे जंग लगाते तेरी नज़र तेरी नज़र चुबे इस कदर तेरी नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र चुबे इस कदर तेरी नज़र नज़र तेरी नज़र नज़र तेरी नज़र नज़र तेरी नज़र नज़र ज़हरीला ज़हरीला ज़हरीली नज़र ज़हरीला ज़हरीला ज़हरीली नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र तेरी नज़र
2.
Choli 05:32
चेहरा छुपा के सूरत नहीं चुप्पी लगा के बोली नहीं घुंगट चढ़ा के वह सपना नहीं गजरा लगा के मैं बिकती गयी रातों को करवट पलटती रही खाना परसती रही चूल्हा जला के सुलगती रही प्यासी तरसती रही तूने ज़िंदा मुझको है पाया वह मुंकिन नहीं वह मुंकिन नहीं ये चोली कैसा है पर्दा जो कुतरे वही जो कुतरे वही गर्मी का एक लम्हा नोचे वही खरोंचे वही ये चौका सजाया भी था माहवारी में पराया भी था मुझको छु के सताया भी था मारा भी था मरवाया भी था 12 महीने पसीना बहे पैरों में छाले नंगे पाओं तले सूना बस लगता रहे ये गाना गुनगुनाना पड़े शीशे में चेहरा धुंधला दिखे ये आँखें चपटी लगें
3.
Tezaab 05:05
टूटा हुआ कांच हूँ मैं ये टुकड़े बिखर ही गए जो पैर रख दे मुझ ही पे वह कट के ही बहते गए आसूं भी सूख गए हैं ये चेहरा पिघल ही गया तेज़ाब फेंका है मुझ पे छपाकों से तू जल गया और क्या कहने को ना कुछ रहा सहने को और क्या कहने को ना कुछ रहा सहने को तेज़ाब फेंक गया मुझ पे बेनकाब कर गया मुझको आईना ना देखा गया मुझसे आयी ना ज़रा भी दया तुझको तेज़ाब तेज़ाब तेज़ाब तेज़ाब टूटा हुआ कांच हूँ मैं ये टुकड़े बिखर ही गए जो पैर रख दे मुझ ही पे वह कट के ही बहते गए आसूं भी सूख गए हैं ये चेहरा पिघल ही गया तेज़ाब फेंका है मुझ पे छपाकों से तू जल गया और क्या कहने को ना कुछ रहा सहने को और क्या कहने को ना कुछ रहा सहने को शायद ही नींद आती है ये जलन तड़पाती है मेरा मन है सलाखों में मेरा तन हुआ राकों में तेज़ाब तेज़ाब तेज़ाब तेज़ाब
4.
Andhera 08:00
अंधेरा अंधेरा है छाया सडक पे तेरा है साया मैं सोचूं पलटता है काया मैं बोलूं तोह आतिश है लाया परछाई ने मुझको है खाया चमक को तूने बुझाया कौन है तू क्यों बताता नहीं इस हीरे को तराशा नहीं सपनो को भी चुराता वही चेहरे पे थी निराशा कहीं ओह आता नहीं ओह जाता नहीं भूका है तू पर प्यासा नहीं सवेरा सवेरा ना आया है खाली आँखों में माया झूठा है वह सच बताता नहीं पापों को भी गिनाता वही प्यार को जो दबाता वही नरमी को भी जलाता वही घबराता वही ओह कतराता वही ऐसा है क्यों बाज़ आता नहीं
5.
जा, ना तू कभी आ ये, तेरा भला ओह लता, छोड़ सपना चली आ, जीना तोह सज़ा हाँ, बदला है समां क्यों, गुमसुम भला अलविदा, अब तोह मुस्कुरा बता, पीछा है छूटा तुमने, तुमने ना जाना ये गीत पुराना होता है क्या जीना, सीखा था मैंने कभी भूलूंगी अब ना कभी तो मुल्ज़िम हूँ क्या? गा, गाना तू ये गा ला, नज़रें झुका सोच क्या, घर बसा चुप, बातें ना बता हाँ, तू तो घबरा आ रहा, कितना मज़ा सपने ना देख, लता वरना, हो लापता तुमने, तुमने ना जाना ये गीत पुराना होता है क्या जीना, सीखा था मैंने कभी भूलूंगी अब ना कभी तो मुल्ज़िम हूँ क्या?
6.
Zakham 05:53
तूने जो लिया सब लिया दिल भी तो थाम दिया चाहता है क्या, तू मुझसे पैसा, ये कैसा मतलबी, तू ऐसा वह आया तलब में बैठा नफरत में उसकी आँखें गलत हैं उजड़ी शकल है माँगा मेरा तन है और सब कुछ जो धन है पर वह ना मिला वह आये, बुलाये जीना सिखाये और गाये, सुनाये सब कुछ करवाए बेहलाये फुसलाये जेबें भरवाए तड़पाये तड़पाये तड़पाये बताये, जताये सीना जलाये समझाए, डराए ज़मीनें चुराए वह दिखाए, हसवाये घमंड में मुस्कुराये रुलाये रुलाये रुलाये मैं डूबी कुए में फन्दा गले में बेकरारी समय में कुछ ना भले में ये नमक है जले पे जलते कलेजे अंधेरे अंधेरे अंधेरे सब कुछ नरम है जीना शर्म है ओह ये कैसा करम है क्या मेरा सितम है जो ना पाया खतम है गहरा ज़ख्म है ज़ख्म है ज़ख्म है ज़ख्म है
7.
Rog 05:40
अरे पड़ गया जोग ज़लील है भोग नए नए लोग देखे लग गया रोग डर गए वह घर गए वह जहाँ भी चले गए मर गए वह छीनी है हसी चुप रह गयी ज़िंदा हूँ मगर सांसें बंद हो गयी कैसा है ये मोह दिख गया जो उसी के ही पीछे अब पड़ गया वह आ... आ... अरे लग गया रोग शाम सवेरे दिल में अंधेरा रहता है काटती हूँ मैं खुदको घाव गहरा लगता है देखती हूँ शीशे में आसूं बह जाती हूँ मोटी या फिर काली सबको मैं लगती हूँ ली है मेरी जान हूँ मैं परेशान दिल भी है टुटा अब टूटे अरमान रोया आसमान भीगा है जहान मिट्टी भी है भूरी भूरा मेरा है नकाब कैसा है ये रोग लगता है रोज़ जाता है नहीं कहीं है ये घनघोर चलती हवा उड़ता बयान पूछती हूँ अब भी क्या नहीं मैं इंसान आ... आ... क्या नहीं मैं इंसान शाम सवेरे दिल में अंधेरा रहता है काटती हूँ मैं खुदको घाव गहरा लगता है देखती हूँ शीशे में आसूं बह जाती हूँ मोटी या फिर काली सबको मैं लगती हूँ जैसी भी हूँ काफी मैं कब हो पाउंगी खुद को ही मैं माफ़ी अब कब दे पाउंगी डूब मरूंगी लेकिन मैं सब सह जाउंगी खुद से ही मैं नफरत अब ना कर पाउंगी
8.
Laadli 06:42
सुनो, मैंने बिगाड़ा है क्या ज़रा बता दो भी ना क्या है कसूर तूने, मुझको बनाया भी था मुझको मिटाया भी है ये कैसा जूनून एक बार गोद में ले लो भी ना, तेरी ही बेटी हूँ माँ कसर रह गयी हम्म... मैं तो, चली गयी एक दिन ना रुकी एक दिन ना दिखी जाने कहाँ मैं अचानक गिर गयी झलकती जो मेरी हसी वह ना खिली घुट के ख़तम हो गयी मेरी सांसें गूंजेंगी कानों में तेरे अनकही बातें जाने कहाँ मैं अचानक गिर गयी झलकती जो मेरी हसी वह ना खिली घुट के ख़तम हो गयी मेरी सांसें गूंजेंगी कानों में तेरे अनकही बातें अरे, इतनी भी जल्दी है क्या एक दिन तो रुकने दे माँ क्या हो जाएगा खाली खाली वह झूला रहा सूना वह कमरा लगा सूनी हैं बाहें तेरी ठोकर है लगती मुझे ज़िन्दगी नशीली सी आँखें मेरी, वह ना खुली सपने जो देखे नहीं, वह जलाये आखरी चीखें भी मेरी दफनाए
9.
Bazaar 06:29
खाई मैं खाई खाली मैं खाली बिकी हथ तेरे खुली बाज़ारी ओह रातों की रानी देखे दुनिया सारी बजती है ताली बारी बारी बारी भीतर शहर में एक बैठा है शिकारी लगती है भारी उसकी निशानी वह जुआरी पूरा जाली करता है मनमानी ये ज़ंजीरें उसी ने तोह है डाली वह ही बेहलाये वह सपना दिखाए घर से उठाये फिर अंधेरे में ले जाए पास आये मुस्कुराये उसकी आँखें तड़पायें उसकी सांसें मेरी गर्दन है जलाये वह बिठाये वह लिटाये ये दीवारें रटवाए एक ही नाच हर बारी वह नचाये लगती मैं नकली कटपुतली जो उसकी तारें बदन पे कसलीं उसके इशारों पे ही अब तो मैं हूँ चलती कमरे में इस कहर में परदे में लिपटे ही हम हैं इस ज़मीं पे सारे बिखरे हुए घम हैं चार दीवारी में रोज़गारी देखो ये किस्मत है कितनी काली मेरी आज़ादी इसने रोज़ है टाली
10.
Awaaz 04:54
रहम करो मैं तो मर ही गयी सहम गयी मैं तो चल ही गयी आग लगी मैं तो जल ही गयी तेरे कदमों में मैं तो खल ही गयी क्यों तू मारे कपड़े उतारे नंगे बदन पे चोट भी डाले आवाज़ उठी तूने चुप भी करी इक कोने में गिर के रो भी पड़ी चीज़ हूँ तेरी या तेरी साथी चीज़ हूँ तेरी या तेरी साथी चीज़ हूँ तेरी या तेरी साथी चीज़ हूँ तेरी या तेरी साथी शुक्रिया तूने ये क्या किया शरीर मेरा कुचल दिया जो भी थी मैं अब बट गयी हिस्सों में भी मैं कट गयी गुस्से में तू रोज़ आता हाथ उठाता लहू बहाता कौन हूँ मैं समझ नहीं पाती क्यों में तुझसे बच नहीं पाती चीज़ हूँ तेरी या तेरी साथी चीज़ हूँ तेरी या तेरी साथी चीज़ हूँ तेरी या तेरी साथी चीज़ हूँ तेरी या तेरी साथी

about

We live in a confused society.There's dependency between sects, but then there's animosity. There's love, but along with it comes possessiveness and a dire need to control. There's an inherent dis-balance, artificial in nature but deep rooted.

This album is dedicated to all women. It's an honest attempt to understand their life, to hear their side of the story, to see what they see and to whatever extent possible, feel what they feel and have felt throughout history.

This album changed me. It made me reflect on what it means to be human. It wasn't easy to make, either. It is by far one of the most difficult things I've done, ever. I hope this ignites the fire of change, brings sensitivity to people's mind and if nothing else, gives people a good hour of music and poetry to enjoy.

That said, I present to you, Awaaz.

credits

released August 19, 2022

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